Thursday, August 12, 2010

Vaikunth mein jaa kar

This is one of my favourites. I grew up listening to this in my aunt's beautiful voice.

वैकुण्ठ में जा कर, मुरली का बजाना भूल गए
मन कुञ्ज में आ कर क्यों रास रचाना भूल गए

जब यहाँ से गए तो तुम मोहन, तो कह के गए थे आऊँगा
आये ना अभी तक तुम कान्हा, वादे का निभाना भूल गए...
वैकुण्ठ में...

हे नाथ तुम्हारे भक्तों पर, विपदा के बादल छाये हैं
ब्रज से जा कर हे नन्द नदन, पर्वत का उठाना भूल गए..
वैकुण्ठ में..

तारा ना अगर मुझ पापी को तो संसार कहेगा क्या तुमको
पतितों के पावन भार हरो, पापी को तराना भूल गए
वैकुण्ठ में...

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