Tuesday, September 6, 2011

Ladli apne charon mein rakh lo

This is a bhajan sung by Shri Baldev Krishna Sehgal जी:
लाडली  अपने चरणों  में  रख  लो  मुझे
इस  पतित  का  भी  उधर  हो  जाये  गा
  तेरे  दर  की  गुलामी  मेरी  आरजू संवरे  का भी दीदार  हो जाये गा....
 लाडली...........

 तेरी  करुना  पे  मुझ  को  बड़ा  नाज़  है ......इक  नज़र  से  बेडा  पार  हो जायेगा ........
    श्री  राधे  करुना मई  कहाती  है......शरण  आये  को उर   लगाती  है
  जिसका  कोई  नहीं  ज़माने  में.....अपना  कह  कर  उसे  बुलाती  है....
    मेरी श्यमा  करुना मई कहाती है..........
 करती  दोषों  को क्षमा ....रखे  निज  हाथ  थमा ......
  किरपा  दृष्टि  की निधि  बहती  है.......मेरी श्यमा  करुना मई कहाती है..........

        जिसको  ठोकर  लगी  हो दर दर से .......उसे निज गोद  में बिठाती   है.....
  श्यमा राधे  करुना मई  कहाती  है.
              तेरी करुना पे मुझ को बड़ा नाज़ है..... इक नजर  से बेडा पार हो जाये गा
             स्वामिनी  अपने चरणों में रख लो मुझे इस  पतित  का भी उधर हो जाये गा....................

Gopal Sawariyan mere

तेरी  प्रीत  ने  हमको  क्या  न  दिखाया,
बदनाम  कर  के  जगत  में  हंसाया ,
 खिची आई  बेखुद  न सोचा  समझा 
लबों  से  लगा  बांसुरी  जब  बुलाया 
अदाओं  भरी  टेढ़ी  चितवन  जो  देखी 
 दिल-ओ-जान  लुटा  जब ज़रा  मुस्कुराया 
सुना  भोली  भली  वो  प्रीती  की  बातें 
  कहा  चल  दिए  जाने  क्या दिल मई  आया 
    तेरी खोज  में जिस्म -ओ-जान राह  भूली 
     पत्ता  पत्ता में ढूंडा  पता  कुछ  न पाया 
   सब  रिश्ते  दिल-ओ-जान तेरे  हाथ  बेचे 
     बहुत  कुछ गवाया  न कुछ हाथ आया
  मजा  खूब  ये  श्याम वह  तेरी उल्फत 
  न घर  का रखा और  न अपना  बनाया 

गोपाल सावरियां मेरे... नन्दलाल सावरिया मेरे

Thursday, April 21, 2011

www.sankirtansewa.org

यह एक नया प्रयास है. श्री विनोद अग्रवाल जी के भजन की विडियो और ऑडियो रेकॉर्डिंग अब सब तक पहुचाने के लिए इस साईट पर जा सकते है. 

Friday, April 1, 2011

जहाँ मान वहां भगवान् कहाँ हैं Gopi Geet Part 1 | Vinod Agrawalji

  Gopi Geet occupies a very special position in bhakti path. I got this recording called 'Madhur Ras Baras Raha"  from iTunes. It is a 2 hour long recording sung beautifully by Vinod Agrawalji.
It starts with Gopis doing raslila with Krishna ji. Then, Krishnaji disappears as gopis develop ego. Then gopis look for him.
गोपी गीत का रसिक साहित्य में अपना स्थान है. मधुर रस बरस रहा रेकॉर्डिंग मुझे iTunes के माध्यम से प्राप्त हुई. इसमें २ घंटे में विनोद अग्रवाल जी ने बहुत सुन्दर रूप से इस प्रसंग को गया है.
इस प्रसंग के शुरू में गोपियाँ कृष्ण जी के साथ न्र्तिया कर रही है. फिर उनके मनन में अभिमान आ जाता है. तो कृष्ण जी अंतर्ध्यान हो जाते है... फिर गोपियाँ उन्हें ढूँढती है.
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चंदा की चांदनी में, यमुना के तीरे, मस्ती से बांसुरी बजाये धीरे धीरे
मदन गोपाल प्यारो मदन गोपाल 
मधुबन के कुंजन में मनहर की बातें, छोटे से कन्हैय्या की ऊंची ऊंची  बातें,
मदन गोपाल प्यारो मदन गोपाल

बढ़ता रहे नित्य वियोग में जो, वह प्राप्त हुए पर ध्यान कहा है
(गोपियों के ह्रदय में श्री कृष्ण के प्रति जो अपर प्रेम है, उसको संसार  को व्यक्त करने के लिए, श्री कृष्ण जी अंतर्ध्यान होते है. जैसे किसी कमरे में बल्ब जल रहा हो, तो लाइट का मोल नहीं. बल्ब बंद करते ही...)
पिता पालक रक्षा तुम्ही करना, मन पापी हमारे समान कहा है
हुए रूप से गर्विता गोपियाँ भी, कलि जीवों का तुच्छ  विधान कहाँ हैं?
हरी अंतर्ध्यान तुरंत हुए, जहाँ मान वहां भगवान् कहाँ हैं?

(सख्य या वात्सल्य भाव में प्रभु  के अतिरिक्त और चीज़ों का देखना विकार नहीं है. लेकिन कान्त भाव में श्याम सुन्दर के अतिरिक्त कुछ भी दिखे, वोह दोष है. गोपियों का  मिलन के समय के समय ध्यान अपने सौभाग्य पर चला गया. तुरंत श्याम सुन्दर अन्तेर्ध्याँ हो गए)

ब्रिजराज कुमार खड़े थे जहाँ, वहां विव्हल हो कर लेटने दौड़ी
कुछ कूद पड़ी यमुना जल में, विरहानल ज्वाला को मेटने दौड़ी,
पदचिन्हे बने जिस मेंद्वानी पर, उस ठौर की धूल समटने दौड़ी
मनमोहनी वंशी बजायी जहाँ, वट वल्लरी वृन्द को भेटने दौड़ी
हा कृष्ण प्यारे, हा श्याम प्यारे...

बिना पागल प्रेमियों के जग में, रुचती मन में यह राह किसे है
ब्रिज्गोपियों के अतिरिक्त भला, प्रभु प्रेम पयोधि की थाह किसे है ?
जब जीवन नाथ ने साथ तजा,  तब जीवन की रही चाह किसे है
पता पूछती वृक्षों से श्याम कहाँ,  जड़ चेतन की परवाह किसे है
(सारा अहंकार... ममता सब विगलित हो गया... जड़ चेतन का भेद भी मिट गया...)
हा कृष्ण प्यारे, हा श्याम प्यारे...

वरवंश  तुम्हारे ही अंश से तो, उपजी वरवंशी भरे रस प्याला
(बांस का पेड़ देख कर पूछती है उससे, तुम इतने ऊचे हो.. देख कर बताओ कहा है कृष्ण)
जिसकी ध्वनी विश्व में गूंज रही, जिसने हमें पागल सा कर डाला
हरे कृष्ण दावाग्नि समान बढ़ी, उर में विराहग्नि की भीषण ज्वाला
तुम प्रेमी पुरातन हो जिसके, कहो बांस कहाँ है वोह मुरली वाला

फिर गोपियों को गिरिराज दिखाई देते है... उनसे पूछती है...

कपिलाये चराते जो नित्य रहे, वोह ग्वारियों के सिरताज कहा हैं
नख ऊपर धारा जिन्होंने तुम्हे, हमें ताज भाग गए वोह आज कहाँ हैं
हरे कृष्ण मुमुर्शु समान हुई, बिना साजन के सुखसाज कहाँ हैं
बड़े ऊचे विराजते हो वन में, गिरिराज कहो ब्रिजराज कहाँ हैं?
 हा कृष्ण प्यारे, हा श्याम प्यारे...

(गोपियों को खयाला आता है... की अगर हम उनको धोंधने के लिए जायेंगे, तो वोह छिपने के लिए और अँधेरे में कंटीले झड़ी में जा सकते है. इससे श्री कृष्ण को हम दुःख ही देंगी. यह सोच कर जहाँ से कृष्ण अंतर्ध्यान हुए थे वही आकर बैठ जाती है. और यहाँ से गोपीगीत शुरू होता है...)

कृष्ण तुव जन्म से ब्रिज की शोभा बढ़ी, रमा देवी ने नित्य निवास किया
उगला धनधान्य वसुंधरा ने, फला अन्न त्रिनादी  का दान दिया
हरे कृष्ण त्रिताप का नाम नहीं, वैकुण्ठ से बढ़ कर सुख लिया
करूणानिधि रूठ गए फिर क्यों, वन में तज के निज प्राणप्रिया?

तुम केवल नन्द के लाला नहीं,  सब प्राणियों के उर अंतर्यामी
(प्रेमी को अगर पूर्ण ज्ञान न हो.. यह संभव है की जिसके प्रति प्रेम हो उसके बारे में पूर्ण ज्ञान नहो... तो प्रेम नहीं टिक सकता..)
सुरव्रंद की प्रार्थना से प्रकटे, भवभार उतारने को खग गामी
हरे कृष्ण अनादी अनंत तथा, अविनाशी अनित्य निरीह निकामी
कृपया मम मस्तक पर पे अपना, धरिये कर कोमल श्रीपति स्वामी
(मस्तक पर हाथ, वक्षस्थल पर चरण रख दो... यह कामनाये गोपीगीत में है... चार stages है प्रार्थना की - पहले गायन, फिर प्रलाप, फिर रूदन या विलाप ....)

तैने कहा लगायी  इतनी देर अरे ओ सांवरिया ......

(इन  चेष्टाओं  से  गोपियाँ  अब  मुर्तिमंत्र  श्री  कृष्ण  दर्शन  लालसा  बन  गयी  है)

तन में ममता नहीं शेष बची, मन में महाभाव की भीड़ बनी थी
मिटी वासना दिव्य प्रकाश हुआ,  कटी वेगी जो कर्म की रज्जू तनी थी
उपमा कही ढूंढे नहीं मिलती, ब्रिजसुन्दरी जैसे सनेहसनी थी 
हरे कृष्ण यही कहना पड़ता, वे कृष्ण के ध्यान में कृष्ण बनी थी 

दृग कन्दरा निर्झर से बरसे, नहीं जान पड़े विधि अब क्या होना 
(इतना संताप देख कर ब्रह्मा जी की सृष्टि अचंभित हो गयी... सारे ब्रह्माण्ड के पाप मिल कर इतना संताप किसी को नहीं दे सकते जितना गोपिया महसूस कर रही थी... )
बढती जब पीड़ा असह्य बढ़ी, तब सूझता जीव को जीवन खोना... 
(गोपिया सोचती है की अगर हम जीवन की इहलीला समाप्त कर देती है, तो वोह यह बात सुनेंगे... तो उन्हें दुःख होगा... तो हम कृष्ण जी यह दुःख नहीं दे सकती... तो गोपिय जीवित रहने का निर्णय लेती है)

दृग कन्दरा निर्झर से बरसे, नहीं जान पड़े विधि अब क्या होना
बढती जब पीड़ा असह्य बढ़ी, तब सूझता जीव को जीवन खोना
करके सब संभव यत्न थकी, मिलता नहीं सुन्दर श्याम सलोना...

Wednesday, January 26, 2011

Motivational from Gopal das Neeraj

Though this is not exactly devotional, but I found quite motivational to think about in times of adversity.

छुप छुप अंश्रु बहाने वालो, मोती व्यर्थ लुटाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है

सपना क्या है, नयन सेज पर सोया हुआ आँख का पानी
बह जाना उसका यूँ की जागे कच्ची नींद जवानी
कच्ची उम्र बनाने वालो, डूबे बिना नहाने वालो
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है
- गोपाल दस नीरज

Tum meri laaj rakho | Surdas | Jagjit Singh

This bhajan is written by Surdas ji. I have a recording sung by Jagjit Singh.

तुम मोरी राखो लाज हरि

तुम जानत सब अन्तर्यामी , करनी कछु ना करी
तुम मोरी राखो लाज हरि

औगुन मोसे बिसरत नाही, पल छिन घरी घरी
तुम मोरी राखो लाज हरि

दारा सुत धन मोह लिए हो, सुध बुध सब बिसरी
तुम मोरी राखो लाज हरि

 सूर पतित को बेग उबारो, अब मेरी नाव तरी (?)
तुम मेरी राखो लाज हरि

Door nagari: sung by Shri Mridul Krishna Shastriji written by Meerabai

यह मीरा बाई का लिखा हुआ भजन है. 

दूर नगरी बड़ी दूर नगरी
कैसे आऊं मैं कन्हाई, तोरी गोकुल नगरी
दूर नगरी बड़ी दूर नगरी

रात को आऊं कान्हा डर मोहि लागे
दिन को आऊं तो देखे सारी नगरी
दूर नगरी बड़ी दूर नगरी

सखी संग आऊं कान्हा शर्म मोहे लागे
अकेली आऊं तो भूल जाऊ  डगरी
दूर नगरी बड़ी दूर नगरी

 धीरे धीरे चलूँ  तो कमर मोरी लचके
 झटपट चलूँ तो छलकाए गगरी
दूर नगरी बड़ी दूर नगरी

मीरा काहे प्रभु गिरिधर नागर
तुमरे दरस बिन मैं तो हो गयी बावरी
दूर नगरी बड़ी दूर नगरी