Saturday, September 25, 2010

More by Bindu Goswami Ji | Sung by Vinod Agrawalji

Found in an album from Vinodji called Shri Dham Vrindavan:

पद आप की पाद की पालक हैं
तो झुका इनमें यह माथ रहे

यदि पंकज की उपमान में है
तो विमिश्रित पंक का पाथ रहे
(अगर आपके चरणों को पंकज या कमल की उपमा दी जाती है, तो कमल तो कीचड़ में उगता है. मेरे पापों की कीचड़ से अच्छी जगह कहा मिलेगी आपके पद-कमलो को प्रकट होने के लिए )

है गुलाब प्रसून की जो उपमा
अभी कंटक का कुछ हाथ रहे
(आपके चरणों को गुलाब की भी उपमा दी जाती है. गुलाब के नीचे कांटे होते है. हम उन कंटक जैसे है, 'कविता सविता नहीं आती, मन में जो आया बका करते है' ...)

नख मंडल है शशि मंडल सा
तो कलंक का 'बिंदु' भी साथ रहे
(आपके नाखूनों को चन्द्रमा की उपमा दे जाती है. चन्द्रमा में भी दाग है. हम वोह कलंक के दाग है... हमारा काम भी बन जाएगा और उपमा भी सार्थक हो जाएगी. इसी लाइन से पता चलता है की यह बिंदु गोस्वामी की रचना है )

मेरे बाँके बिहारी मो पे कृपा करो...

Tuesday, September 7, 2010

Mridul Krishna Shastriji | Rasik Vani

I was listening to swagatam Krishna sung by Mridul Krishna Shastriji and thought to share these with every one:
स्वागतम कृष्ण, शरणागतम कृष्ण

अभी आता ही होगा सलोना मेरा
हम राह उसी की तका करते हैं
कविता सविता नहीं जानते है
मन में जो आया सो बका करते हैं

पड़ते उनके पद पंकज में
चलते चलते जो थका करते हैं
उनका रस रूप पिया करते हैं
उनकी छवि छाप छका करते हैं

अपने प्रभु को हम ढूँढ लियो
जैसे लाल अमोलक लाखन में
प्रभु के अंग में जितनी नरमी
उतनी नरमी नहीं माखन में

स्वागतम कृष्ण, शरणागतम कृष्ण