तेरी प्रीत ने हमको क्या न दिखाया,
बदनाम कर के जगत में हंसाया ,
खिची आई बेखुद न सोचा समझा
लबों से लगा बांसुरी जब बुलाया
अदाओं भरी टेढ़ी चितवन जो देखी
दिल-ओ-जान लुटा जब ज़रा मुस्कुराया
सुना भोली भली वो प्रीती की बातें
कहा चल दिए जाने क्या दिल मई आया
तेरी खोज में जिस्म -ओ-जान राह भूली
पत्ता पत्ता में ढूंडा पता कुछ न पाया
सब रिश्ते दिल-ओ-जान तेरे हाथ बेचे
बहुत कुछ गवाया न कुछ हाथ आया
मजा खूब ये श्याम वह तेरी उल्फत
न घर का रखा और न अपना बनाया
गोपाल सावरियां मेरे... नन्दलाल सावरिया मेरे
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