Monday, August 30, 2010

Why did Krishna ji leave Vrindavan

"हम प्रेम दीवानी हैं" के अंत में विनोद अग्रवाल जी ने यह गाया है. प्रसंग है की उद्धव पूछते है की जब सारी गोपिंया आपके ध्यान में मग्न रहती है, तो फिर आप वृन्दावन छोड़ क्यों आये? आपने उनको विरह ही क्यों दिया? श्री कृष्ण कहते है की मैंने अपने खजाने में से सबसे अनमोल रत्ना दिया है. मुझसे बड़ा मेरा विरह है. मुझ में इतना रस नहीं जितना मेरे विरह में है.

प्रीती धन रावरे को अति ऋण बाढयो सिर
जान नहीं पाऊँ कर कैसे के चुकिजिये

बार बार काहे को लजाओ हो गरीब मैं,
भावे राज त्रिभुवन तो गिरवी रख लीजिये

मूल धन देवे कु कदापि ना समर्थ जान
मोको रख सूद में उऋण लिख लीजिये

ललित विहारिणी  सेठानी ब्रज धाम की
श्याम तो ग़ुलाम पद जौन्हो जग दीजिये

Wednesday, August 25, 2010

Jo Karunakar tumhara Braj mein phir avtaar ho jaaye | Bindu ji

यह भजन बिंदु जी महाराज द्वारा लिखा हुआ है:

जो करुनाकर तुम्हारा ब्रज में फिर अवतार हो जाए
तो भक्ति का चमन उजड़ा हुआ गुलज़ार हो जाए 

गरीबों को उठा लो सांवले गर अपने हाथों से
तो इसमें शक नहीं दोनों का जीर्णोधार हो जाए

लुटा कर दिल जो बैठे है, वोह रो रो कर यह कहते हैं
किसी सूरत से सुन्दर श्याम का दीदार हो जाए

सुना दो रसमयी अनुराग की वोह बांसुरी अपनी
की जिसकी तान की तार तन में पैदा तार हो जाए

पड़ी भाव सिन्धु में है दीनो के दृगबिंदु की नैय्या
कंहैय्या तुम सहारा दो तो बेडा पार हो जाए

जो करूणा कर तुम्हारा ब्रज में फिर अवतार हो जाए
जो करूणाकर तुम्हारा ब्रज में फिर अवतार हो जाए
तो भक्ति का चमन उजड़ा हुआ गुलज़ार हो जाए

(नोट: इस भजन की पहली लाइन में करूणा कर को तोड़ दे तो अलग मतलब बन जाता है... इसीलिए मैंने जोड़ कर औत तोड़ कर लिखा है)

Apradhi and Radhika | Binduji and Vinod Agrawal ji

कैसे ठाकुर जी ने राधा जी की से जुडी सब चीजों का मान बढाया है. बिंदु जी महाराज द्वारा लिखा गया है, और विनोद अग्रवाल जी ने गाया है "सुर रखवारी"  (बांके बोलो तो सही ) में :

यह कीर्ति सुता हैं या की कीर्ति पसार वे को
किर्तिविहीन हु की कीर्ति बढ़ावे हैं

यह गोप की सुता है, या के गोप कुल मान राखी,
'बिंदु' ग्वाल बालन की झूठन हु खावे हैं

राधिका के शब्द में है, आदि शब्द राधी
या ते श्याम अपराधी, कंठ से लगावे हैं

राधा राधा राधा, राधा राधा राधा

Monday, August 23, 2010

Some sher-o-shayari from Vinod Agrawal ji

जितना दिया सरकार ने, उतनी मेरी औकात नहीं,
यह तो करम है मेरे श्याम का, वरना मुझमें ऐसी कोई बात नहीं

कोई सलीका है आरज़ू का, ना बंदगी मेरी बंदगी है,
यह सब तुम्हारा करम है आका की बात अब तक बनी हुई है

कितने परवाने जल गए, राज़ यह पाने के लिए
की शम्मा जलने के लिए है या जलाने के लिए

राहों में चलते चलते, पूछा पैर के घावों ने
बस्ती कितनी दूर बसा ली, दिल में बसने वालो ने

ग़म मेरे साथ बड़ी दूर तक गए,
पर जब पायी ना मुझ में थकान
तो वोह खुद थक गए

तेरी महफ़िल में सब बोसे-ले-जाम के
और हम यूँ ही रहे किश्ता-लब पैग़ाम के

Wednesday, August 18, 2010

Mera Aap Ki Kripa Se, Sab Kaam Ho Raha Hai

This is a very popular bhajan sung by Shri Vinod Agrawal and Baldev Krishan ji.
I have heard it live in Toronto when Vinod ji and Baldev ji were here from Aug 13 to August 15, 2010.
मेरा आप की दया से , सब काम हो रहा है
मेरा आप की कृपा से, सब काम हो रहा है
करते हो तुम कन्हैया, मेरा नाम हो रहा है

(पहले दया से, फिर कृपा से... क्या अंतर है? विनोदजी ने समझाया की दया होती है और कृपा की जाती है. उधाहरण के रूप में विनोदजी कहते है की दया अक-४७ की तरह है, सब तरफ बरस रही, जिसको लगी लगी. लेकिन कृपा तो रेवोल्वर की तरह निशाना लगा कर की जाती है. )

पतवार के बिना ही, मेरी नाव चल रही है
हैरान है ज़माना, मंजिल भी मिल रही है
करता नहीं मैं कुछ भी, सब काम हो रहा है...

तुम साथ हो जो मेरे, किस चीज़ की कमी है
किसी और चीज़ की अब, दरकार ही नहीं है
तेरे साथ से ग़ुलाम अब, गुलफाम हो रहा है

(विनोद जी कहते ही की उसके साथ का मतलब क्या है? वोह कोई बांसुरी बजता हुआ, पीताम्बर लहराता हुआ सामने थोड़े ही आ जायेगा. यह तो आग्रह है, यह ही हमारे मिलन में बाधक बन जाते है. अवतार वाद से पूरी बात नहीं बनती. अवतार में भगवन भक्तो को जीवन जीना का तरीका बताते है. अगर उनको अपने अवतार में इतना कुछ सहना पड़ा तो हमारी औकात ही क्या. क्या वोह अपने संकल्प मात्रा से हे सब संकट और बाधाएं दूर नहीं कर सकते है. लेकिन उन्होंने समझाया है.
इस आग्रह को भक्ति में दुराग्रह भी कह देते है. उसको आना किसी और रूप से था लेकिन जब हमने अपना आग्रह रख दिया, तो वोह कहता है की जब मौका लगेगा तभी आऊँगा.
अगर हम परेशानी में हो, और किसी बात से हमारा काम बन जाए तो समझना की वोह इश्वर की कृपा ही थी. ऐसे अवसर पर हम अपने पुरुषार्थ को, दुसरे की एहसान को ही मान लेते है. लेकिन अगर हम इश्वर की कृपा को मान लें, तो वोह अनुभव द्रढ़ हो जाएगा और हमें आगे लेता जाएगा...)

मैं तो नहीं हूँ काबिल, तेरा प्यार कैसे पाऊँ
टूटी हुई वाणी से, गुणगान कैसे गाऊं
तेरी प्रेरणा से ही, सब तमाम हो रहा है
तेरी प्रेरणा से ही यह कमाल हो रहा है...

मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है..

(इस भजन की कुछ और लाइन नांगलोई के प्रोग्राम से मिली... यहाँ लिख रहा हूँ)

तूफ़ान आंधियों में तू ने ही  मुझको थामा
तुम कृष्ण बन के आये, मैं जब बना सुदामा
तेरा करम है मुझ पर, सरे आम हो रहा है
करते हो तुम कन्हैया.. मेरा नाम हो रहा है...

गज के रुदन से प्यारे, थे नंगे पाँव धाये
काटे थे उसके बंधन और प्राण थे बचाए
हर हाल में भगत का सनमान हो रहा है...
करते हो तुम कन्हैया मेरा नाम हो रहा है...
मेरा आपकी कृपा से...

Tuesday, August 17, 2010

Radhe Tere Charno ki

Baldev Krishna ji sang this bhajan on Sunday at the Hindu Heritage Centre in Mississauga, Canada.

राधे तेरे चरणों की, श्यामा तेरे चरणों की गर धुल जो मिल जाए
सच कहती हूँ मेरी, तकदीर ही बदल जाए

यह मन बड़ा चंचल है, कैसे तेरा भजन करूँ
जितना इसे समझाउं, उतना ही मचल जाए
राधे तेरे चरणों की...

सुनते है तेरी रहमत, दिन रात बरसती है
एक बूँद जो मिल जाए, दिल की कलि खिल जाय
राधे तेरे चरणों की...

नजरों से गिराना ना, चाहे जो भी  सजा देना
नज़रों से जो गिर जाए, मुश्किल है संभल पाना
राधे तेरे चरणों की....

बस एक तमन्ना है, भक्त के इस दिल में
तू सामने हो मेरे, मेरा दम ही निकल जाए...

 राधे तेरे चरणों की...

Monday, August 16, 2010

करुना करिके करुनानिधि रोये

Recently, Shri Mridula Krishna Shartiji Maharaj was in Toronto and did Bhagwat Katha. In the Katha, he mentioned snippets of this poem.
It was orignially written by Shri Narottam Das, who was a contemporary of Meera Bai, Surdas, Tulsi das etc. He wrote two major poems, Dhruva Charita and Sudama Chrit. I am pasting the Sudama Charit. If anyone finds Dhruva Chrit, please let me know.

विप्र सुदामा बसत हैं, सदा आपने धाम।
भीख माँगि भोजन करैं, हिये जपत हरि-नाम॥

ताकी घरनी पतिव्रता, गहै वेद की रीति।
सलज सुशील सुबुद्धि अति, पति सेवा सौं प्रीति॥

कह्यौ सुदामा एक दिन, कृस्न हमारे मित्र।
करत रहति उपदेस गुरु, ऐसो परम विचित्र॥

(सुदामा की पत्नी)
लोचन-कमल, दुख मोचन, तिलक भाल,

स्रवननि कुंडल, मुकुट धरे माथ हैं।

ओढ़े पीत बसन, गरे में बैजयंती माल,

संख-चक्र-गदा और पद्म लिये हाथ हैं।

विद्व नरोत्तम संदीपनि गुरु के पास,

तुम ही कहत हम पढ़े एक साथ हैं।

द्वारिका के गये हरि दारिद हरैंगे पिय,

द्वारिका के नाथ वै अनाथन के नाथ हैं॥


(सुदामा)
सिच्छक हौं, सिगरे जग को तिय, ताको कहाँ अब देति है सिच्छा।
जे तप कै परलोक सुधारत, संपति की तिनके नहि इच्छा॥
मेरे हिये हरि के पद-पंकज, बार हजार लै देखि परिच्छा।
औरन को धन चाहिये बावरि, ब्राह्मन को धन केवल भिच्छा॥

(सुदामा की पत्नी)
कोदों, सवाँ जुरितो भरि पेट, तौ चाहति ना दधि दूध मठौती।
सीत बितीतत जौ सिसियातहिं, हौं हठती पै तुम्हें न हठौती॥
जो जनती न हितू हरि सों तुम्हें, काहे को द्वारिका पेलि पठौती।
या घर ते न गयौ कबहूँ पिय, टूटो तवा अरु फूटी कठौती॥

(सुदामा)
छाँड़ि सबै जक तोहि लगी बक, आठहु जाम यहै झक ठानी।
जातहि दैहैं, लदाय लढ़ा भरि, लैहैं लदाय यहै जिय जानी॥
पाँउ कहाँ ते अटारि अटा, जिनको विधि दीन्हि है टूटि सी छानी।
जो पै दरिद्र लिखो है ललाट तौ, काहु पै मेटि न जात अयानी॥

(सुदामा की पत्नी)
विप्र के भगत हरि जगत विदित बंधु,

लेत सब ही की सुधि ऐसे महादानि हैं।

पढ़े एक चटसार कही तुम कैयो बार,

लोचन अपार वै तुम्हैं न पहिचानि हैं।

एक दीनबंधु कृपासिंधु फेरि गुरुबंधु,

तुम सम कौन दीन जाकौ जिय जानि हैं।

नाम लेते चौगुनी, गये तें द्वार सौगुनी सो,

देखत सहस्त्र गुनी प्रीति प्रभु मानि हैं॥


(सुदामा)
द्वारिका जाहु जू द्वारिका जाहु जू, आठहु जाम यहै झक तेरे।
जौ न कहौ करिये तो बड़ौ दुख, जैये कहाँ अपनी गति हेरे॥
द्वार खरे प्रभु के छरिया तहँ, भूपति जान न पावत नेरे।
पाँच सुपारि तै देखु बिचार कै, भेंट को चारि न चाउर मेरे॥

यह सुनि कै तब ब्राह्मनी, गई परोसी पास।
पाव सेर चाउर लिये, आई सहित हुलास॥

सिद्धि करी गनपति सुमिरि, बाँधि दुपटिया खूँट।
माँगत खात चले तहाँ, मारग वाली बूट॥

दीठि चकचौंधि गई देखत सुबर्नमई,

एक तें सरस एक द्वारिका के भौन हैं।

पूछे बिन कोऊ कहूँ काहू सों न करे बात,

देवता से बैठे सब साधि-साधि मौन हैं।

देखत सुदामा धाय पौरजन गहे पाँय,

कृपा करि कहौ विप्र कहाँ कीन्हौ गौन हैं।

धीरज अधीर के हरन पर पीर के,

बताओ बलवीर के महल यहाँ कौन हैं?


(श्रीकृष्ण का द्वारपाल)
सीस पगा न झगा तन में प्रभु, जानै को आहि बसै केहि ग्रामा।
धोति फटी-सी लटी दुपटी अरु, पाँय उपानह की नहिं सामा॥
द्वार खड्यो द्विज दुर्बल एक, रह्यौ चकिसौं वसुधा अभिरामा।
पूछत दीन दयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥

बोल्यौ द्वारपाल सुदामा नाम पाँड़े सुनि,

छाँड़े राज-काज ऐसे जी की गति जानै को?

द्वारिका के नाथ हाथ जोरि धाय गहे पाँय,

भेंटत लपटाय करि ऐसे दुख सानै को?

नैन दोऊ जल भरि पूछत कुसल हरि,

बिप्र बोल्यौं विपदा में मोहि पहिचाने को?

जैसी तुम करौ तैसी करै को कृपा के सिंधु,

ऐसी प्रीति दीनबंधु! दीनन सौ माने को?


ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये।
हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये॥
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सौं पग धोये॥

(श्री कृष्ण)
कछु भाभी हमको दियौ, सो तुम काहे न देत।
चाँपि पोटरी काँख में, रहे कहौ केहि हेत॥

आगे चना गुरु-मातु दिये त, लिये तुम चाबि हमें नहिं दीने।
श्याम कह्यौ मुसुकाय सुदामा सों, चोरि कि बानि में हौ जू प्रवीने॥
पोटरि काँख में चाँपि रहे तुम, खोलत नाहिं सुधा-रस भीने।
पाछिलि बानि अजौं न तजी तुम, तैसइ भाभी के तंदुल कीने॥

देनो हुतौ सो दै चुके, बिप्र न जानी गाथ।
चलती बेर गोपाल जू, कछू न दीन्हौं हाथ॥

वह पुलकनि वह उठ मिलनि, वह आदर की भाँति।
यह पठवनि गोपाल की, कछू ना जानी जाति॥

घर-घर कर ओड़त फिरे, तनक दही के काज।
कहा भयौ जो अब भयौ, हरि को राज-समाज॥

हौं कब इत आवत हुतौ, वाही पठ्यौ ठेलि।
कहिहौं धनि सौं जाइकै, अब धन धरौ सकेलि॥

वैसेइ राज-समाज बने, गज-बाजि घने, मन संभ्रम छायौ।
वैसेइ कंचन के सब धाम हैं, द्वारिके के महिलों फिरि आयौ।
भौन बिलोकिबे को मन लोचत सोचत ही सब गाँव मँझायौ।
पूछत पाँड़े फिरैं सबसों पर झोपरी को कहूँ खोज न पायौ॥

कनक-दंड कर में लिये, द्वारपाल हैं द्वार।
जाय दिखायौ सबनि लैं, या है महल तुम्हार॥

टूटी सी मड़ैया मेरी परी हुती याही ठौर,

तामैं परो दुख काटौं कहाँ हेम-धाम री।

जेवर-जराऊ तुम साजे प्रति अंग-अंग,

सखी सोहै संग वह छूछी हुती छाम री।

तुम तो पटंबर री ओढ़े किनारीदार,

सारी जरतारी वह ओढ़े कारी कामरी।

मेरी वा पंडाइन तिहारी अनुहार ही पै,

विपदा सताई वह पाई कहाँ पामरी?


कै वह टूटि-सि छानि हती कहाँ, कंचन के सब धाम सुहावत।
कै पग में पनही न हती कहँ, लै गजराजहु ठाढ़े महावत॥
भूमि कठोर पै रात कटै कहाँ, कोमल सेज पै नींद न आवत।
कैं जुरतो नहिं कोदो सवाँ प्रभु, के परताप तै दाख न भावत॥

Thursday, August 12, 2010

This time in Punjabi | From Vinod Aggarwal

सानु लोढ़ की सारे ज़माने की एक श्याम प्यारा काफी है...
अस्सी सारे सहारे छड़ दित्ते , एक तेरा सहारा काफी है

प्रह्लाद दी बिगड़ी बनाये सी नरसी दी हुंडी तराई सी
तू चाहे तो पल विच पार करे, तेरा एक इशारा काफी है

अर्जुन दा रथ चलाया सी, साग विदुर घर खाया सी
अस्सी सारे द्वारे छड़ दित्ते, एक तेरा द्वारा काफी है

नन्द नायी  दा रूप बनाया सी, धन्ने जाट दा हल चलाया सी
अस्सी सारे नज़ारे छड़ दित्ते , तेरा एक नजारा काफी है

सानु लोढ़ की सारे ज़माने की एक श्याम प्यारा काफी है...

(एक नजर कृपा की कर दो, सांवरिया गिरधारी )

Vaikunth mein jaa kar

This is one of my favourites. I grew up listening to this in my aunt's beautiful voice.

वैकुण्ठ में जा कर, मुरली का बजाना भूल गए
मन कुञ्ज में आ कर क्यों रास रचाना भूल गए

जब यहाँ से गए तो तुम मोहन, तो कह के गए थे आऊँगा
आये ना अभी तक तुम कान्हा, वादे का निभाना भूल गए...
वैकुण्ठ में...

हे नाथ तुम्हारे भक्तों पर, विपदा के बादल छाये हैं
ब्रज से जा कर हे नन्द नदन, पर्वत का उठाना भूल गए..
वैकुण्ठ में..

तारा ना अगर मुझ पापी को तो संसार कहेगा क्या तुमको
पतितों के पावन भार हरो, पापी को तराना भूल गए
वैकुण्ठ में...

Jo Shyam par fida ho

This bhajan was written by Bindoo Goswami, a prominent personality in  Vrindavan.

जो श्याम पर फ़िदा हो, उस तन को ढूँढ़ते हैं
घर श्याम का हो जिसमें, वोह मन ढूंढते हैं

बंधता है जिस में, वोह ब्रह्म मुक्त बंधन
उस प्रेम के अनूठे बंधन को ढूंढते है
जो श्याम...

जो बीत जाए प्रीतम की याद में विरह में
जीवन भी देके ऐसे, जीवन को ढूंढते है
जो श्याम...

आहों की जो घटा हो, दामनी  हो दर्द-इ-दिल की
दृग बिंदु वर से बरसे, उस घन को ढूंढते है
जो श्याम पर....

Welcome

This blog is to post texts of bhajans that I hear. My favourite singer is Vinod Agrawal. He sings from variety of sources including Bindoo Goswami, Narottam Das, Surdas, Bulle Shah and others.